
दीपावली का पूजन केवल इसलिए नहीं किया जाता कि धन प्राप्त हो, वरन इसलिए कि मानसिक शांति, सुख-समृद्धि आध्यात्मिक ऊर्जा से हमारा जीवन प्रकाशवान हो। सामान्यत: लोगों की मानसिकता ऐसी रहती है कि नीति-अनीति से प्राप्त धन एवं वैभव की प्राप्ति के लिए यह पर्व है। इसे धन-लक्ष्मी का पर्व ही मानते हैं और धन प्राप्त करने के लालच में ही यह पूजन करते हैं, पर ऐसा नहीं है। भगवान राम ने अपनी इंद्रियों को केंद्रित कर वनवास में तप किया और रावण को मारकर अयोध्या वापस आए उस खुशी में भी यह त्योहार मनाया गया। भगवान राम के आदर्श चरित्ं, मर्यादाओं को मानते हुए अपनी इंद्रियों पर बसे काम रूपी रावण को मारकर आध्यात्मिक लक्ष्य की ओर लौटकर ज्ञान का दीपक और जीवन ज्योति जलाना ही दीपावली का सही संदेश है।
एरोड्रम क्षेत्र में दिलीप नगर स्थित शंकराचार्य मठ इंदौर के अ धिष्ठाता ब्रह्मचारी डॉ. गिरीशानंदजी महाराज ने अपने विशेष प्रवचन में गुरुवार को यह बात कही।
लक्ष्मीपति नहीं लक्ष्मी पुत्र बनें
महाराजश्री ने कहा कि लक्ष्मीपति नहीं लक्ष्मी पुत्र बनें लक्ष्मीपति तो भगवान विष्णु हैं, कोई भी उनकी जगह कैसे ले सकता है। निर्बलों की सहायता करें और धन का सदुपयोग करें, सही मायने में यही लक्ष्मी पूजन है, क्योंकि लक्षमी का उपयोग करोगे तो वे सदा साथ देंगी, उपभोग करोगे तो वे साथ छोड़ देंगी। दीपावली का त्योहार सादगी से मनाएं, पटाखे आतिशबाजी के समय बच्चों का ध्यान रखें। जिससे कोई अनहोनी न हो। अड़ौस-पड़ोस में रह रहे वृद्धजन के स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर ही पटाखे चलाएं। कुछ क्षणों के आनंद के लिए दूसरों को दुःख देना सनातन र्म को स्वीकार नहीं है। दूसरों की रक्षा और उनकी सुविधाओं का ध्यान रखना भी हमारा धर्म है।